Public Safety Act: सार्वजनिक सुरक्षा अधिनियम
Public Safety Act 1978 : सार्वजनिक सुरक्षा अधिनियम 1978
हाल ही में जम्मू एंव कश्मीर में हो रही आतंकी घटनाओं के संबंध में केंद्रीय गृह मंत्री के दौरे से कुछ दिनों पहले लगभग 700 से भी अधिक लोगों को गिरफ्तार किया गया जिनमें से कुछ लोगों को सार्वजनिक सुरक्षा अधिनियम (Public Safety Act) के तहत गिरफ्तार किया गया है।
आतंकी हमले में 11 नागरिक मारे गए जिनमें से अधिकतर लोग बिहार और उत्तर प्रदेश से आए हुए प्रवासी मजदूर थे। इस हमले की जिम्मेदारी पाकिस्तान में स्थित एक आतंकवादी समूह लश्कर-ए-तैयबा ने ली है।
PSA के तहत गिरफ्तार किए गए कैदियों को जम्मू एवं कश्मीर के बाहर की जेलों में रखा जाएगा।
क्या है PSA क़ानून?
सार्वजनिक सुरक्षा अधिनियम किसी भी व्यक्ति पर बिना मुकदमा चलाए 2 साल तक गिरफ्तारी या फिर नजरबंद करने की अनुमति देता है। इस कानून को वर्ष 1978 में लागू किया गया था जिसका मुख्य उद्देश्य लकड़ियों की तस्करी को रोकना था।
इस अधिनियम के तहत पहले 16 वर्ष से अधिक आयु के व्यक्ति को गिरफ्तार किया जा सकता था लेकिन 2011 के बाद इसमें बदलाव किया गया जिसमें आयु को बढ़ाकर 18 वर्ष कर दिया गया यानि अब 18 वर्ष से अधिक आयु के किसी भी व्यक्ति को बिना मुकदमा चलाए 2 साल तक गिरफ्तार या फिर नजरबंद किया जा सकता है।
ज्यादातर इस कानून का इस्तेमाल आतंकवादियों और अलगाववादि नेताओं के खिलाफ किया गया है।
इस कानून के तहत सरकार द्वारा राज्य के किसी भी क्षेत्र को संरक्षित किया जा सकता है जिसमें उस क्षेत्र के भीतर नागरिकों की आवाजाही पर कुछ पाबंदियां लगाई जा सकती हैँ।
यह कानून सरकार को ऐसे किसी भी व्यक्ति को गिरफ्तार करने का अधिकार देता है जिस पर सरकार को राष्ट्र की सुरक्षा व्यवस्था के लिए खतरा होने का अंदेशा हो।
हाईकोर्ट में चुनौती
इस कानून के तहत गिरफ्तार किए गए व्यक्तियों के लिए एक समिति का गठन किया जाता है जो कि समय पर इनकी समीक्षा करती रहती है। इस क़ानून को उच्च न्यायालय में चुनौती दी जा सकती है।
PSA के तहत गिरफ्तार करने के आदेश जिला मजिस्ट्रेट या फिर संभागीय आयुक्त द्वारा जारी किए जा सकते हैं। इसके अनुसार किसी भी गिरफ्तार किए गए व्यक्ति पर किसी प्रकार का कोई मुकदमा या फिर अन्य कानूनी कार्यवाही नहीं की जाएगी।
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