जलियांवाला बाग हत्याकांड:103 वर्ष बाद भी स्पष्ट नहीं हो सकी शहीदों की संख्या
जलियांवाला बाग हत्याकांड: 103 वर्ष बाद भी स्पष्ट नहीं हो सकी शहीदों की संख्या।
13 अप्रैल के दिन ही हुआ था जलियांवाला बाग हत्याकांड।
जलियांवाला बाग हत्याकांड की 103 वीं बरसी पर भी स्पष्ट नहीं हो सकी शहीदों की संख्या।
जलियांवाला बाग हत्याकांड में शहीदों की संख्या की अस्पष्टता
आज जलियांवाला बाग हत्याकांड के 13 अप्रैल 2022 को 103 वर्ष पूरे हो चुके हैं।
जलियांवाला बाग हत्याकांड की घटना भारत के पंजाब राज्य के अमृतसर में जलियांवाला बाग में 13 अप्रैल 1919 को घटित हुई। जिसमें अंधाधुंध गोलीबारी से सैकड़ों लोग शहीद हो गए और हजारों की संख्या में लोग घायल हुए।
ब्रिटिश राज के अभिलेखों के अनुसार इस घटना में कुल 200 लोग घायल और 379 लोग शहीद हुए। जबकि अनाधिकारी आंकड़ों के अनुसार 1000 से अधिक लोग मारे गए तथा 2000 से अधिक लोग घायल हुए थे।
अमृतसर के डिप्टी कमिश्नर कार्यालय में 484 शहीदों की सूची है जबकि जलियांवाला बाग में 388 शहीदों के नाम शामिल है।
इस घटना ने भारत के स्वतंत्रता संग्राम पर अधिक गहरा प्रभाव डाला ऐसा माना जाता है कि यह घटना है भारत में ब्रिटिश शासन के अंत की शुरुआत का कारण बनी।
किस कारण से घटित हुई जलियांवाला बाग हत्याकांड घटना
वर्ष 1919 को 13 अप्रैल के दिन बैसाखी का दिन था जिस दिन रोलेट एक्ट का विरोध करने के लिए जलियांवाला बाग में एक सभा रखी गई थी। जिसमें सभी लोग शांतिपूर्ण ढंग से रौलट एक्ट का विरोध कर रहे थे लेकिन तभी ब्रिगेडियर जनरल रेजीनॉल्ड डायर 90 ब्रिटिश सैनिकों के साथ वहां पहुंचा और बाग को चारों ओर से घेर लिया गया उसके बाद जनरल ब्रिगेडियर जनरल रेजीनॉल्ड डायर ने बिना किसी चेतावनी के वहां बैठे लोगों पर गोलियां चलाने का आदेश दे दिया। इसमें 10 मिनट के अंतर्गत 1650 राउंड गोलियां चलाई गई।
जलियांवाला बाग के चारों और मकान होने के कारण सिर्फ एक ही संकरा रास्ता था जहां से लोग अपनी जान बचाकर भागने में सफल ना हो सके। कुछ लोग अपनी जान बचाने के लिए बाग में मौजूद कुएं में कूद गए। लेकिन देखते ही देखते वह कुंआ भी शवों से भर गया।
बाग में लगी एक पट्टी का में यह विवरण दिया गया है कि सिर्फ कुएं से ही 120 शव निकाले गए थे।
देश में कर्फ्यू होने के कारण सभी अस्पताल भी बन थे जिस वजह से घायलों को उपचार भी ना मिल सका और
रोलेट एक्ट (काला कानून) क्या है?
रोलेट एक्ट को काला कानून भी कहा जाता है इसे 18 मार्च 1919 को भारत में उभर रहे आंदोलन को कुचलने के उद्देश्य से बनाया गया था। प्रथम विश्व युद्ध में इंग्लैंड की विजय के बाद ब्रिटिश सरकार ने इस कानून की घोषणा की थी। रोलेट एक्ट के तहत
1. ब्रिटिश सरकार को यह अधिकार प्राप्त हो गया था कि वह भारतीयों पर बिना मुकदमा चलाए उन्हें जेल में बंद कर सकती है।
2. मुकदमे के फैसले के बाद किसी भी भारतीय अधिकारी को उच्च न्यायालय में अपील करने का अधिकार नहीं था।
3. कानून के तहत ब्रिटिश सरकार को यह अधिकार मिल गया कि वह बलपूर्वक प्रेस की स्वतंत्रता को छीन सकती है। तथा किसी भी व्यक्ति को अपनी इच्छा से तेल की सजा सुना दे या फिर देश से निष्कासित कर दें।
ब्रिटिश सरकार क्रांतिकारी गतिविधियों को कुचलने और भारतीयों के अधिकारों की स्वतंत्रता को खत्म करने के लिए यह कानून लाई थी। इस कानून के विरोध में आंदोलन के दो नेता सत्यपाल और सैफुद्दीन किचलू को गिरफ्तार कर काला पानी की सजा सुना दी गई थी। नेताओं की गिरफ्तारी के बाद भारतीयों का गुस्सा भड़क उठा और वह इसके विरोध में जलियांवाला बाग में सभा कर रहे थे जिस दौरान उन पर गोलियां चलाई गई।
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